हेल्लो दोस्तों , आप देख रहे है स्टार गुरु यूट्यूब चैनल दोस्तों आज हम आपको बताएगे ख्वाजा गरीब नवाज के बारे में , ख्वाजा मोउनुद्दीन चिस्ती की जिंदगी के बारे में ,
दोस्तों इस में हम आपको ख्वाजा गरीब नवाज़ की जिंदगी से जुडी हर एक बात बताने वाले है अगर आप ख्वाजा गरीब नवाज की जिंदगी के बारे में जानना चाहते है तो आप इस वीडियो को शुरू से लेकर आखिर तक जरूर देखे
ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती रहमतुल्लाहि अलेह एक इमाम थे जो 1141 ई. में अफगानिस्तान और ईरान के बीच में चिश्ती शहर में पैदा हुए ।
आप हुस्सैनी सईद है . आप के वालिद मोहतरम हज़रात ग़यासुद्दीन रहमतुल्लाहि अलैहि जो
हज़रातिमाम हुसैन रदिअल्लहु तल्ला अन्हु की औलाद में से है और आपकी वालिदा मोहतरमा सईदा बीबी उम्मालवारा जो हज़रात इमाम हसन रदिअल्लहु तल्ला अन्हु की औलाद में से है ,
आप के वालिदैन निहायत ही सीधे और परहेज़गार थे .ख्वाजा साहेब की पैदाइश से पहले ही आपके घर में करामातों का ज़हूर शुरू हो गया था .आपके घर में बरकतों नियामतों के दरवाज़े खुल गए थे . दुश्मन दोस्त बनने लगे .इज़्ज़त बढ़ने लगी. जब से माँ के पेट में आप के जिस्म में रूह पड़ी उस वक़्त से पैदाइश तक आधी रात से सुबह होने तक आपके घर में ला इल्लाहा इल्ला का ज़िक्र करते रहते.
आप की पैदाइश की रात आप का घर नूर से भर गया था. आपकी माँ की घबराहट देख गैब से आवाज़ आयी ए औरत परेशान ना हो यह मेरा ही नूर था जो मेने तेरे लखत ए जिगर बेटे में भर दिया है
ख्वाजा ग़रीब नवाज़ 14 साल के थे तब ही आप के वालिद का साया सर से उठ गया. और अभी आप अपने वालिद का ग़म भुला भी ना पाए थे के आपकी वालिदा भी इस दुनिया से पर्दा फरमा गयी
उसके बाद ख्वाजा साहेब का इस दुनिया से दिल भर गया और हकीकी मंजिल की जुस्तजू ने करवट ली आप को उस वक़्त ऐसे बन्दे की तलाश हुई जो बन्दे को खुदा से मिलाता है
एक दिन आप अपने बाग़ में दरख्तों को पानी दे रहे थे की हरजरात शेख इब्राहिम ख़ानदोज़ी वहा तशरीफ़ लाए जो खुदा के दीवाने थे जो एक बुजुर्ग थे ख्वाजा साहेब अपना सारा काम छोड़ कर उनकी खिदमत में हाजिर हुए और उनके दस्ते मुबारक को बोसा देकर उनकी छाव में बैठे और अपना बाग़ के अंगूर पेश किए और खुद दोज़ानू जैसे नमाज में बैठते है वैसे बैठ गए
हजरत शेख खन्दोजी रहमतुल्लाहि अलेह को ख्वाजा साहेब का ये अंदाज बहुत ही पसंद आया बहुत ही अच्छा लगा वो समझ गए की ये लड़का मारिफ़ाते इलाहि का मुतलाशी है उन्होंने एक लकड़ि का टुकड़ा अपने दांतो से चबा कर ख्वाजा साहेब के मुंह में डाला , वो लकड़ी का टुकड़ा शराबे मारिफ़त का जाम जैसा था जिसे चखते ही ख्वाजा साहेब की आँखों में नूर ही नूर छा गया , खुदी के तमाम परदे हट गए और दिल में खुदा की मोहब्बत जोश मारने लगी
जिसका नतीजा यह हुवा की आप ने अपनी तमाम जायदाद बेच कर गरीबो में बाँट दी और खुद मारिफ़त ए इलाही की तलाश में निकल पड़े , मगर इस के लिए इल्म का हासिल करना बहुत जरूरी था और उसके बाद उस इल्म के अमल की , तब कही जा कर जलवा मेहबूब नजर आता है , समरकंद और बुखारा उन दिनों अजीमोशान दारुल उलूम हुआ करते थे , दुनिया के कोने कोने से बच्चे इनमे पढ़ने आते थे और ओलमाओ के गोहर पाते थे
ख्वाजा साहेब ने भी अपने लिए इसी मरकज का इंतिखाब किया , यहाँ उन्होंने उलूमे ज़ाहिरी की तालीम पाई , फिर आप मुरसदे कामिल की तलाश में बगदाद गए वहाँ खसबै हारुन में ख्वाजा उस्मान ए हारुन से मुलाक़ात हुई जो बहुत पहुंचे हुए पीर थे आपका ख्वाजा उस्मान ए हारुन की सोहबत में बिस साल का अरसा गुजरा
आप ने इन की हर तरह से खिदमत की और वो नियामते पाई जो ब्यान से बाहर है ख्वाजा उस्मान ए हारुन रहमतुल्लाहि अलेह ख्वाजा साहेब को बहुत चाहते थे और कहते थे मोइउनुद्दीनन मेहबूब ए हक़ है और मुझे उस पर नाज़ है आप अक्सर रोजे रखते थे और आप की इन इबादत का ही नतीजा था के आप की रूहानी ताक़त इतनी बढ़ी हुई थी की आप की नजर जिस पर भी पड़ जाती वो चश्मे ज़दन यानी पालक झपकने तक में आपका दीवाना बन जाता था
एक बार ख्वाजा साहेब ने अपने मुर्शिद से इजाजत लेकर मक्का मुकर्रमा के लिए रवाना हुए , वहां आप की किस्मत का सितारा चमका और आप पर मेहबूब ए हकीकी मेहरबान हो गए , मेहबूब ए हकीकी ने फ़रमाया ए मोईनुदीन में तुझ से राज़ी हूँ और तू बक्श दिया गया और तू जो चाहे तलब फ़रमाले
इस पर ख्वाजा साहेब ख़ुशी से बेखुद हो गए , फिर भी आप ने अपने लिए नहीं बल्कि अपने सिलसले में आने वाले तमाम मुरीदो की बखसीस की दुआ मांगी और ता कयामत तक इस सिलसिले चिश्तिया को कायम रखने की दुआ मांगी आप की यह दुआ उसी वकत मकबूल हुई उसी वक्त कबूल हो गयी और इसी दुआ के फजल से और अल्लाह के करम से ये सिलसिला अब तक कायम है
यह दुआ ख्वाजा साहेब की फराख दिली की मिसाल है , आप ने इतने बरसो की कड़ी रियाज़त ओ इबादत का फल अपने चाहने वालो को बक्श दिया , जो ता कयामत तक तलब गारो को मिलता रहेगा
आप अपने मुरशाद कामिल के हमराह मदीने मुनवारा गए और हुजूर स. अ. के रोज़ा ए मुबारक पर हाज़री दी , गरीब नवाज जानते थे की इसी बारगाह अज़मत से बादसाही और सरदारी मिलती है , इस दहलीज से निकलने वाले क़ुतुब और गौश के बुलंद मरतबे पर फैज़ होते है
चुनाचे ख्वाजा साहेब काफी आरसे तक दरूदो सलाम का तोहफा पेश करते रहे , एक रोज आप मुस्सले पर थे के हुजूर के रोज़े मुबारक से आवाज आई , मोयुनुद्दीन को बुलाओ , ख्वाजा साहेब आस्ताने मुबारक पहुंच कर हुजूर स. अ. के दीदार से मुसर्रफ हुए और हुक्म हुवा , ए मोईनुद्दीन तू हमारे दिन का मददगार है और खास हमारा है हम तुम्हे विलायत ए हिन्द अता करते है , तुम अजमेर जाओ और वहां से कुफ्र ओ ज़हालत को दूर करो
ख्वाजा साहेब रसुल्लाह स. अ का तोहफा लेकर रवाना हुए , राह सफर में जहां भी जो बुजुर्ग मिलते उनसे मुलाक़ात का फैज़ हासिल किया और अपने मुरशाद की खिदमत में हाजिर हो कर उन से इजाजत ली और अजेमर आ पहुंचे
ख्वाजा गरीब नवाज जब अजमेर पहुंचे उस वक्त अजमेर में पृथ्वी राज चौहान का राज चलता था , वहा के लोगो ने ख्वाजा साहेब की बहुत मुखालफत की , आपको हर तरह से सताया गया , आप ने खुदा के करम से हर एक मुखालफत करने वाले का दिल बदला और उनकी तकदीर बदली और उन्हें अपनी नरम दिली की वजह से माफ़ फ़रमाया
आप की तालीमों तब्लीग़ से मुतास्सिर हो कर लोग इस्लाम में दाखिल होने लगे , पृथ्वी राज ने ये हाल देख कर अपने गुलामो , जोगियो और जादूगरों को भेजा , जिन्होंने अपने सारे जादू ख्वाजा साहेब पर आजमाए लेकिन ये सब बातिल हक़ के आगे कहाँ ठहरने वाले थे , सब ख्वाजा की करामातों बरकतो से भाग गए और ख्वाजा का हाथ पकड़ कर तोबा की और इस्लाम कबूल किया
उनमे जादूगर जयपाल जोगी का किस्सा तो मशहूर है जो बहुत ही पहुंचा हुवा जादूगर था और वो ख्वाजा के हलके में दाखिल हो कर वली के दर्जे को पहुंचे और आप ने उनका नाम अब्दुल्लाह बियाबानी रखा आज भी अब्दुल्लाह बियाबानी का नाम भूले भटको को राह दिखाता है
यही पर एक लंगर खाना जारी किया गया जिसके दरवाज़े हर मुस्लिम और गैरमुस्लिम के लिए खुले रहते थे वो लंगर तब से लेकर आज तक वैसे ही चल रहा है
हजरत ख्वाजा मोईनुद्दीन चिस्ती रहमतुल्लाहि अलेह गरीबो के लिए मसीहा थे , आप अपने मुरीदो से और अकीदत मन्दो से फरमाते के जरुरतमंदो ओर गरीबो से मोहब्बत रखो , जो इनको दोस्त रखता है खुदा उसको दोस्त रखता hai , कभी कोई आप को नजराना करता तो आप गरीबो में बाँट देते थे , ख्वाजा साहेब को अपने मुरीदो से बहुत मोहब्बत थी , आप को हुजूर स. अ. से इतनी मोहब्बत थी इतना इश्क़ था की जहां हुजूर का नाम आया आप की आँखे पुरनम हो जाती थी
दोस्तों , आपको जानकारी अच्छी लगे और पसंद आए तो लाइक जरूर करना और हमारे चैनल को सब्सक्राइब करना ना भूलना , दोस्तों आपका बहुत बहुत सुक्रिया
दोस्तों इस में हम आपको ख्वाजा गरीब नवाज़ की जिंदगी से जुडी हर एक बात बताने वाले है अगर आप ख्वाजा गरीब नवाज की जिंदगी के बारे में जानना चाहते है तो आप इस वीडियो को शुरू से लेकर आखिर तक जरूर देखे
ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती रहमतुल्लाहि अलेह एक इमाम थे जो 1141 ई. में अफगानिस्तान और ईरान के बीच में चिश्ती शहर में पैदा हुए ।
आप हुस्सैनी सईद है . आप के वालिद मोहतरम हज़रात ग़यासुद्दीन रहमतुल्लाहि अलैहि जो
हज़रातिमाम हुसैन रदिअल्लहु तल्ला अन्हु की औलाद में से है और आपकी वालिदा मोहतरमा सईदा बीबी उम्मालवारा जो हज़रात इमाम हसन रदिअल्लहु तल्ला अन्हु की औलाद में से है ,
आप के वालिदैन निहायत ही सीधे और परहेज़गार थे .ख्वाजा साहेब की पैदाइश से पहले ही आपके घर में करामातों का ज़हूर शुरू हो गया था .आपके घर में बरकतों नियामतों के दरवाज़े खुल गए थे . दुश्मन दोस्त बनने लगे .इज़्ज़त बढ़ने लगी. जब से माँ के पेट में आप के जिस्म में रूह पड़ी उस वक़्त से पैदाइश तक आधी रात से सुबह होने तक आपके घर में ला इल्लाहा इल्ला का ज़िक्र करते रहते.
आप की पैदाइश की रात आप का घर नूर से भर गया था. आपकी माँ की घबराहट देख गैब से आवाज़ आयी ए औरत परेशान ना हो यह मेरा ही नूर था जो मेने तेरे लखत ए जिगर बेटे में भर दिया है
ख्वाजा ग़रीब नवाज़ 14 साल के थे तब ही आप के वालिद का साया सर से उठ गया. और अभी आप अपने वालिद का ग़म भुला भी ना पाए थे के आपकी वालिदा भी इस दुनिया से पर्दा फरमा गयी
उसके बाद ख्वाजा साहेब का इस दुनिया से दिल भर गया और हकीकी मंजिल की जुस्तजू ने करवट ली आप को उस वक़्त ऐसे बन्दे की तलाश हुई जो बन्दे को खुदा से मिलाता है
एक दिन आप अपने बाग़ में दरख्तों को पानी दे रहे थे की हरजरात शेख इब्राहिम ख़ानदोज़ी वहा तशरीफ़ लाए जो खुदा के दीवाने थे जो एक बुजुर्ग थे ख्वाजा साहेब अपना सारा काम छोड़ कर उनकी खिदमत में हाजिर हुए और उनके दस्ते मुबारक को बोसा देकर उनकी छाव में बैठे और अपना बाग़ के अंगूर पेश किए और खुद दोज़ानू जैसे नमाज में बैठते है वैसे बैठ गए
हजरत शेख खन्दोजी रहमतुल्लाहि अलेह को ख्वाजा साहेब का ये अंदाज बहुत ही पसंद आया बहुत ही अच्छा लगा वो समझ गए की ये लड़का मारिफ़ाते इलाहि का मुतलाशी है उन्होंने एक लकड़ि का टुकड़ा अपने दांतो से चबा कर ख्वाजा साहेब के मुंह में डाला , वो लकड़ी का टुकड़ा शराबे मारिफ़त का जाम जैसा था जिसे चखते ही ख्वाजा साहेब की आँखों में नूर ही नूर छा गया , खुदी के तमाम परदे हट गए और दिल में खुदा की मोहब्बत जोश मारने लगी
जिसका नतीजा यह हुवा की आप ने अपनी तमाम जायदाद बेच कर गरीबो में बाँट दी और खुद मारिफ़त ए इलाही की तलाश में निकल पड़े , मगर इस के लिए इल्म का हासिल करना बहुत जरूरी था और उसके बाद उस इल्म के अमल की , तब कही जा कर जलवा मेहबूब नजर आता है , समरकंद और बुखारा उन दिनों अजीमोशान दारुल उलूम हुआ करते थे , दुनिया के कोने कोने से बच्चे इनमे पढ़ने आते थे और ओलमाओ के गोहर पाते थे
ख्वाजा साहेब ने भी अपने लिए इसी मरकज का इंतिखाब किया , यहाँ उन्होंने उलूमे ज़ाहिरी की तालीम पाई , फिर आप मुरसदे कामिल की तलाश में बगदाद गए वहाँ खसबै हारुन में ख्वाजा उस्मान ए हारुन से मुलाक़ात हुई जो बहुत पहुंचे हुए पीर थे आपका ख्वाजा उस्मान ए हारुन की सोहबत में बिस साल का अरसा गुजरा
आप ने इन की हर तरह से खिदमत की और वो नियामते पाई जो ब्यान से बाहर है ख्वाजा उस्मान ए हारुन रहमतुल्लाहि अलेह ख्वाजा साहेब को बहुत चाहते थे और कहते थे मोइउनुद्दीनन मेहबूब ए हक़ है और मुझे उस पर नाज़ है आप अक्सर रोजे रखते थे और आप की इन इबादत का ही नतीजा था के आप की रूहानी ताक़त इतनी बढ़ी हुई थी की आप की नजर जिस पर भी पड़ जाती वो चश्मे ज़दन यानी पालक झपकने तक में आपका दीवाना बन जाता था
एक बार ख्वाजा साहेब ने अपने मुर्शिद से इजाजत लेकर मक्का मुकर्रमा के लिए रवाना हुए , वहां आप की किस्मत का सितारा चमका और आप पर मेहबूब ए हकीकी मेहरबान हो गए , मेहबूब ए हकीकी ने फ़रमाया ए मोईनुदीन में तुझ से राज़ी हूँ और तू बक्श दिया गया और तू जो चाहे तलब फ़रमाले
इस पर ख्वाजा साहेब ख़ुशी से बेखुद हो गए , फिर भी आप ने अपने लिए नहीं बल्कि अपने सिलसले में आने वाले तमाम मुरीदो की बखसीस की दुआ मांगी और ता कयामत तक इस सिलसिले चिश्तिया को कायम रखने की दुआ मांगी आप की यह दुआ उसी वकत मकबूल हुई उसी वक्त कबूल हो गयी और इसी दुआ के फजल से और अल्लाह के करम से ये सिलसिला अब तक कायम है
यह दुआ ख्वाजा साहेब की फराख दिली की मिसाल है , आप ने इतने बरसो की कड़ी रियाज़त ओ इबादत का फल अपने चाहने वालो को बक्श दिया , जो ता कयामत तक तलब गारो को मिलता रहेगा
आप अपने मुरशाद कामिल के हमराह मदीने मुनवारा गए और हुजूर स. अ. के रोज़ा ए मुबारक पर हाज़री दी , गरीब नवाज जानते थे की इसी बारगाह अज़मत से बादसाही और सरदारी मिलती है , इस दहलीज से निकलने वाले क़ुतुब और गौश के बुलंद मरतबे पर फैज़ होते है
चुनाचे ख्वाजा साहेब काफी आरसे तक दरूदो सलाम का तोहफा पेश करते रहे , एक रोज आप मुस्सले पर थे के हुजूर के रोज़े मुबारक से आवाज आई , मोयुनुद्दीन को बुलाओ , ख्वाजा साहेब आस्ताने मुबारक पहुंच कर हुजूर स. अ. के दीदार से मुसर्रफ हुए और हुक्म हुवा , ए मोईनुद्दीन तू हमारे दिन का मददगार है और खास हमारा है हम तुम्हे विलायत ए हिन्द अता करते है , तुम अजमेर जाओ और वहां से कुफ्र ओ ज़हालत को दूर करो
ख्वाजा साहेब रसुल्लाह स. अ का तोहफा लेकर रवाना हुए , राह सफर में जहां भी जो बुजुर्ग मिलते उनसे मुलाक़ात का फैज़ हासिल किया और अपने मुरशाद की खिदमत में हाजिर हो कर उन से इजाजत ली और अजेमर आ पहुंचे
ख्वाजा गरीब नवाज जब अजमेर पहुंचे उस वक्त अजमेर में पृथ्वी राज चौहान का राज चलता था , वहा के लोगो ने ख्वाजा साहेब की बहुत मुखालफत की , आपको हर तरह से सताया गया , आप ने खुदा के करम से हर एक मुखालफत करने वाले का दिल बदला और उनकी तकदीर बदली और उन्हें अपनी नरम दिली की वजह से माफ़ फ़रमाया
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यही पर एक लंगर खाना जारी किया गया जिसके दरवाज़े हर मुस्लिम और गैरमुस्लिम के लिए खुले रहते थे वो लंगर तब से लेकर आज तक वैसे ही चल रहा है
हजरत ख्वाजा मोईनुद्दीन चिस्ती रहमतुल्लाहि अलेह गरीबो के लिए मसीहा थे , आप अपने मुरीदो से और अकीदत मन्दो से फरमाते के जरुरतमंदो ओर गरीबो से मोहब्बत रखो , जो इनको दोस्त रखता है खुदा उसको दोस्त रखता hai , कभी कोई आप को नजराना करता तो आप गरीबो में बाँट देते थे , ख्वाजा साहेब को अपने मुरीदो से बहुत मोहब्बत थी , आप को हुजूर स. अ. से इतनी मोहब्बत थी इतना इश्क़ था की जहां हुजूर का नाम आया आप की आँखे पुरनम हो जाती थी
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