हेल्लो दोस्तों , आप देख रहे है स्टार गुरु यूट्यूब , दोस्तों आज हम बात करेंगे हाजी अली शाह के दरगाह की जो मुंबई के वर्ली तट के पास में एक छोटे से टापू पर बनी हुवी है और बात करेंगे उनके करामातों की , दोस्तों मुम्बई मे पिछले कुछ दिनो से हो रही लगातार बारिश ने पुरी मुम्बई मे पानी ही पानी कर दिया है । इसी लगातार हो रही बारिश के कारण समुद्र के पानी का जलस्थर भी काफी बढ गया है । लेकिन मुम्बई मे समुन्दर के बिचो बिच मोजुद सरकार हाजी अली रह.अ. कि दरगाह के आस पास भी पानी खतरे के निशान से उपर चला गया है , लेकिन उस समुन्दर के पानी कि इतनी हिम्मत नही जो एक कतरा पानी भी सरकार हाजी अली रह.अ. कि दरगाह मे चला जाऐ । ये देख कर देश और दुनिया के बडे बडे वैज्ञानिक भी हैरान है कि आखिर एसा केसे हो सकता है कि पानी दरवाजो और खिडकीयो से उपर चला जाए लेकिन एक कतरा भी अन्दर ना जाए । हमारे देश कि सबसे बडी न्युज एजेन्सी इण्डिया टुडे ने भी इस खबर को प्रमुखता से छापा है ।
"ये तो मेरे सरकार हाजी अली का करिश्मा है
दोस्तों हाजी अली दरगाह की खासियत यह है कि यहां सच्चे मन से जो भी कोई मुराद मांगता हैं उसकी मन्नत पूरी होती है। लेकिन सबसे खास बात ये कि यह दरगाह समुद्र के बीच में होते हुए भी ये डूबती नहीं। अगर आप भी इसकी वजह जानना चाहते हैं तो दोस्तों इस को आखिर तक देखे और जाने की आखिर क्यों समंदर में तैरती रहती है हाजी अली की दरगाह,
हाजी अली की दरगाह सैय्यद पीर हाजी अली शाह बुखारी की याद में सन 1431 में बनाई गयी थी ये दरगाह जमीन से कम से कम 500 गज दूर समु्द्र के भीतर बनी है। फिर भी ये डूबती नहीं है
हाजी अली की दरगाह तक पहुंचने के लिए लोगों को लंबे सीमेंट के बने पुल से होकर गुजरना पड़ता है जो कि दोनों ही तरफ से समुद्र से घिरा है। लोगों की पीढ़ी दर पीढ़ी चलती आ रही कहानियों और दरगाह के ट्रस्टियों की मानें को पीर हाजी अली शाह पहली बार जब व्यापार करने अपने घर से निकले थे तब उन्होंने मुंबई के वरली के इसी इलाक़े को अपना ठिकाना बनाया था।. और फिर यही पर रहने लगे ,
उन्होंने यहीं रहकर इस्लाम धर्म का प्रचार-प्रसार करने की बात सोची। इसी मकसद के साथ उन्होंने अपनी मां को एक खत लिखकर इसकी जानकारी दी और अपनी सारी संपत्ति गरीबों में बांटकर धर्म का प्रचार-प्रसार करने लगे। हाजी अली सबसे पहले हज की यात्रा पर गए, लेकिन इस यात्रा के दौरान उनकी मौत हो गयी। मरने से पहले उन्होंने अपनी अंतिम इच्छा जताई थी की मरने के बाद उन्हें दफनाया न जाएं बल्कि उनके कफन को समुद्र में डाल दिया जाए। लोगो ने ऐसा ही किया और उनके ताबूत को अरब सागर के समुन्दर में डाल दिया गया, लेकिन उनका ताबूत तैरता हुवा अरब सागर से होता हुआ मुंबई की इसी जगह पर आकर रुक गया, जहां वो रहते थे।
जहां उनका ताबूत आकर रूका उसी जगह पर 1431 में उनकी याद में दरगाह बनाई गई। खासबात ये कि तेज लहरों के आने के बावजूद भी इस दरगाह के भीतर पानी की एक बूंद नहीं जाती है।
दोस्तों इस दरगाह की खासियत यह भी है यहां हिन्दू मुस्लिम हर समुदाय के लोग अपनी मन्नते लेकर पहुंचते है और सबकी मुरादे पूरी होती है
और दोस्तों ये तो मेरे सरकार हाजी अली का करिश्मा है और खुदाई करिश्मा है जिसकी वजह से समुन्दर के पानी का एक कटरा भी दरगाह के अंदर नहीं जा पाटा है
दोस्तों
जानकारी अच्छी लगे तो वीडियो को लाइक जरूर करना और हमारे चैनल को सब्सक्राइब करना ना भूलना , वीडियो देखने के लिए आपका बहुत बहुत सुक्रिया
"ये तो मेरे सरकार हाजी अली का करिश्मा है
दोस्तों हाजी अली दरगाह की खासियत यह है कि यहां सच्चे मन से जो भी कोई मुराद मांगता हैं उसकी मन्नत पूरी होती है। लेकिन सबसे खास बात ये कि यह दरगाह समुद्र के बीच में होते हुए भी ये डूबती नहीं। अगर आप भी इसकी वजह जानना चाहते हैं तो दोस्तों इस को आखिर तक देखे और जाने की आखिर क्यों समंदर में तैरती रहती है हाजी अली की दरगाह,
हाजी अली की दरगाह सैय्यद पीर हाजी अली शाह बुखारी की याद में सन 1431 में बनाई गयी थी ये दरगाह जमीन से कम से कम 500 गज दूर समु्द्र के भीतर बनी है। फिर भी ये डूबती नहीं है
हाजी अली की दरगाह तक पहुंचने के लिए लोगों को लंबे सीमेंट के बने पुल से होकर गुजरना पड़ता है जो कि दोनों ही तरफ से समुद्र से घिरा है। लोगों की पीढ़ी दर पीढ़ी चलती आ रही कहानियों और दरगाह के ट्रस्टियों की मानें को पीर हाजी अली शाह पहली बार जब व्यापार करने अपने घर से निकले थे तब उन्होंने मुंबई के वरली के इसी इलाक़े को अपना ठिकाना बनाया था।. और फिर यही पर रहने लगे ,
उन्होंने यहीं रहकर इस्लाम धर्म का प्रचार-प्रसार करने की बात सोची। इसी मकसद के साथ उन्होंने अपनी मां को एक खत लिखकर इसकी जानकारी दी और अपनी सारी संपत्ति गरीबों में बांटकर धर्म का प्रचार-प्रसार करने लगे। हाजी अली सबसे पहले हज की यात्रा पर गए, लेकिन इस यात्रा के दौरान उनकी मौत हो गयी। मरने से पहले उन्होंने अपनी अंतिम इच्छा जताई थी की मरने के बाद उन्हें दफनाया न जाएं बल्कि उनके कफन को समुद्र में डाल दिया जाए। लोगो ने ऐसा ही किया और उनके ताबूत को अरब सागर के समुन्दर में डाल दिया गया, लेकिन उनका ताबूत तैरता हुवा अरब सागर से होता हुआ मुंबई की इसी जगह पर आकर रुक गया, जहां वो रहते थे।
जहां उनका ताबूत आकर रूका उसी जगह पर 1431 में उनकी याद में दरगाह बनाई गई। खासबात ये कि तेज लहरों के आने के बावजूद भी इस दरगाह के भीतर पानी की एक बूंद नहीं जाती है।
दोस्तों इस दरगाह की खासियत यह भी है यहां हिन्दू मुस्लिम हर समुदाय के लोग अपनी मन्नते लेकर पहुंचते है और सबकी मुरादे पूरी होती है
और दोस्तों ये तो मेरे सरकार हाजी अली का करिश्मा है और खुदाई करिश्मा है जिसकी वजह से समुन्दर के पानी का एक कटरा भी दरगाह के अंदर नहीं जा पाटा है
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